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शहर को सहता हूँ,शहर में रहता हूँ
शहर में डूबा हूँ , शहर में बहता हूँ
Shahar ko sahta hoon, Shahar mein rahta hoon
Shahar mein dooba hoon, Shahar mein bahta hoon
एक छोटे शहर से हूँ जो हिमालय की तलहटी में शिवालिक के पहाड़ों में बसा हुआ है । वैसे वो शायद छोटा शहर तब था जब मैं भी छोटा था । जब नौ वर्ष की आयु में मैं वहाँ आया, तब वहाँ की आबादी कुछ ४०-४५ हज़ार ही थी। अब आबादी एक लाख से ऊपर है । मैं भी तीस का आँकड़ा पार कर गया हूँ ।
मैं जहाँ बड़ा हुआ, वहाँ पर पहाड़ और जंगल नदी के साफ़ पानी में तैरते नज़र आते थे, चाहे सूरज से दहकता दिन हो या चाँदनी से महकती रातें । मैं इन सब का साथ छोड़ कर इससे ज़्यादा हरियाली की खोज में निकल पड़ा और इससे ज़्यादा सूखे बियाबानों में पहुँच गया ।
इस ब्लॉग के ज़रिए अपनी कुछ रुचियों को उजागर करना चाहता हूँ - लिखना, पढ़ना और कहानियाँ सुनाना ।
From a small town on the foothills of Himalaya’s Shivalik range. Though it was a small town when I moved there at the age of 9 and its population was some 40-45 thousand. Now that I have crossed 30s, my town has gone past 1 lakh too.
The place I grew up in, you could see the reflection of mountains and forests floating in clear river waters, whether it was a sunny day or a starry moonlit night. That I moved away in search for greener pastures is quite ironical. Ended up in drier, more arid and less greener areas. Populating this blog to give vent to some interests - reading, writing and telling stories.
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